फरवरी 2026 में होने वाले बांग्लादेश के आम चुनावों की राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं। इस चुनावी माहौल में, खुलना-1 सीट देश भर में सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोर रही है। इसकी वजह चौंकाने वाली है: अपनी कट्टर इस्लामिक छवि वाली पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने पहली बार यहां एक हिंदू उम्मीदवार, कृष्णा नंदी, को टिकट दिया है।
यह कदम केवल अप्रत्याशित ही नहीं, बल्कि हिंदू बहुल इस क्षेत्र में बांग्लादेश की राजनीति की दिशा बदलने वाला माना जा रहा है। बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदू समुदाय का हिस्सा लगभग 10% है, लेकिन कई सीटों पर यह समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता है।
खुलना-1 सीट पर हिंदू उम्मीदवार क्यों?
जमात का यह फैसला इस सीट की सामाजिक-सांख्यिकीय संरचना (Socio-Demographic Structure) को देखते हुए लिया गया है।
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हिंदू बाहुल्य क्षेत्र: खुलना-1 की दोनों उपजिलाएं डाकोप और बटियाघाटा एक स्पष्ट हिंदू बाहुल्य क्षेत्र हैं।
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दशकों का दबदबा: इस क्षेत्र में दशकों से हिंदू नेताओं का ही दबदबा रहा है, और 1996 से लेकर अब तक हर बार इसी समुदाय से सांसद चुना गया है।
जमात-ए-इस्लामी ने इस तथ्य को भांपते हुए, मुस्लिम चेहरे की जगह, एक ऐसे चेहरे पर दांव लगाया जिसकी ग्राउंड लेवल पर मजबूत पकड़ है और जो हिंदू वोट बैंक में पार्टी की नई एंट्री के लिए सही चेहरा हो। यही वजह है कि पहले घोषित उम्मीदवार अबू यूसुफ को बदलकर, कृष्णा नंदी के नाम को मंजूरी दी गई।
कौन हैं कृष्णा नंदी?
कृष्णा नंदी कोई नए राजनीतिक चेहरे नहीं हैं।
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पार्टी की सदस्यता: वे 2003 से जमात-ए-इस्लामी के सदस्य हैं और उन्होंने $1,000$ टका देकर पार्टी की सदस्यता ली थी।
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पार्टी में पद: वह डुमुरिया उपज़िला जमात की हिंदू कमेटी के अध्यक्ष भी हैं।
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पेशेवर पृष्ठभूमि: पेशे से वे एक व्यवसायी हैं और पिछले कुछ महीनों से जमात के मंचों पर सक्रिय रहे हैं।
कट्टर इस्लामिक छवि वाली जमात, अचानक इतनी नरम कैसे?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जमात का यह कदम पूरी तरह से एक नई राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।
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वोट बैंक की अस्थिरता: 5 अगस्त के बाद आवामी लीग के प्रतिबंधित होने के चलते, हिंदू वोट अब इधर-उधर झूल रहे हैं। BNP के पास कुछ पकड़ है, लेकिन जमात के लिए यह नया क्षेत्र है जहां उसे अपनी स्वीकार्यता बनानी है।
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उदार चेहरा (Liberal Image): जमात खुद को उदार (Liberal) दिखाने की कोशिश में लगी है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, जो खेल अब तक आवामी लीग खेलती रही, अब वही रणनीति जमात ने भी अपना ली है।
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पार्टी में बदलाव: जमात की ओर से लगातार यह दावा किया जा रहा है कि पार्टी अपना संविधान बदल चुकी है, जिसमें सभी धर्मों के लोगों को सदस्य बनने की अनुमति दी गई है और अल्पसंख्यकों को नेतृत्व में जगह देने का वादा किया गया है।
खुलना में हाल ही में जमात का हिंदू सम्मेलन, जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल हुए थे, इसी दिशा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह कदम यह दिखाता है कि बांग्लादेश की राजनीति अब धार्मिक पहचान के संकीर्ण दायरे से बाहर निकलकर, चुनावी जीत की व्यावहारिक रणनीति पर अधिक केंद्रित हो रही है।