बरमूडा ट्रायंगल का नाम आते ही जहाजों और विमानों के रहस्यमय तरीके से गायब होने की कहानियां दिमाग में घूमने लगती हैं। यह इलाका फ्लोरिडा, बरमूडा और पोर्तो रिको के बीच स्थित है। पिछले करीब 100 वर्षों में यहां 50 से अधिक जहाज और 20 से ज्यादा विमान लापता होने की घटनाएं दर्ज की गई हैं। सबसे चर्चित मामला साल 1945 का है, जब अमेरिकी नेवी के पांच बॉम्बर विमान—जिन्हें ‘फ्लाइट 19’ कहा जाता है—14 लोगों के साथ अचानक लापता हो गए थे। इन्हें खोजने गया एक सर्च प्लेन भी वापस नहीं लौटा। इन घटनाओं ने बरमूडा ट्रायंगल को रहस्यों और डर की कहानियों का केंद्र बना दिया।
क्या सच में कोई अलौकिक ताकत है?
वैज्ञानिकों का मानना है कि बरमूडा ट्रायंगल में होने वाली घटनाओं के पीछे कोई अलौकिक शक्ति नहीं, बल्कि प्राकृतिक और मानवीय कारण हैं। इस क्षेत्र में मौसम अचानक बदल जाता है, तेज तूफान आते हैं और गल्फ स्ट्रीम जैसी शक्तिशाली समुद्री धाराएं बहती हैं, जो जहाजों को रास्ते से भटका सकती हैं। इसके अलावा, कंपस में गड़बड़ी और पायलट या नाविकों की इंसानी गलतियां भी हादसों का कारण बनती हैं। विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि यह इलाका दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री और हवाई मार्गों में से एक है, इसलिए यहां घटनाओं की संख्या ज्यादा दिखती है। असल में, यहां लापता होने की दर दुनिया के अन्य समुद्री क्षेत्रों जितनी ही है।
बरमूडा ट्रायंगल का असली नया रहस्य
हालांकि अब बरमूडा ट्रायंगल से जुड़ा एक नया और वास्तविक रहस्य सामने आया है, जो समुद्र की सतह पर नहीं बल्कि धरती की गहराई में छिपा है। वैज्ञानिकों ने बरमूडा द्वीप के नीचे एक अनोखी चट्टान की परत की खोज की है। यह परत धरती की क्रस्ट से लगभग 20 किलोमीटर नीचे स्थित है और आसपास की चट्टानों की तुलना में करीब 1.5 प्रतिशत कम घनी है। इसी वजह से बरमूडा द्वीप समुद्र की सतह से लगभग 500 मीटर ऊपर बना हुआ है, मानो कोई राफ्ट पानी पर तैर रहा हो।
यह परत कैसे बनी और क्यों है खास?
बरमूडा एक प्राचीन ज्वालामुखी द्वीप है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यहां आखिरी बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट करीब 3 करोड़ साल पहले हुआ था। आमतौर पर जब किसी ज्वालामुखी का सक्रिय काल खत्म हो जाता है, तो पृथ्वी की क्रस्ट ठंडी होकर नीचे धंस जाती है और द्वीप धीरे-धीरे समुद्र में डूबने लगता है। लेकिन बरमूडा के साथ ऐसा नहीं हुआ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि आखिरी ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान मेंटल की गर्म चट्टानें क्रस्ट के नीचे घुस गईं और वहीं जम गईं। इस प्रक्रिया को ‘अंडरप्लेटिंग’ कहा जाता है। इससे एक हल्की लेकिन मजबूत परत बनी, जिसने द्वीप को ऊपर उठाकर रखा। यही वजह है कि बरमूडा आज भी समुद्र की सतह से ऊंचा बना हुआ है।
पृथ्वी पर अनोखी संरचना
इस तरह की चट्टान की परत अब तक पृथ्वी के किसी और हिस्से में नहीं पाई गई है। आमतौर पर समुद्री क्रस्ट के नीचे सीधे मेंटल शुरू हो जाता है, लेकिन बरमूडा में क्रस्ट और मेंटल के बीच यह अतिरिक्त परत मौजूद है। यही इसे भूवैज्ञानिक दृष्टि से बेहद खास बनाती है।
वैज्ञानिकों ने कैसे की खोज?
इस खोज को कार्नेगी साइंस के सीस्मोलॉजिस्ट विलियम फ्रेजर और येल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेफ्री पार्क ने अंजाम दिया। उनकी यह स्टडी प्रतिष्ठित जर्नल Geophysical Research Letters में प्रकाशित हुई है।
उन्होंने दुनिया भर में आए 396 बड़े भूकंपों से निकलने वाली भूकंपीय तरंगों का अध्ययन किया। बरमूडा पर स्थित एक सीस्मिक स्टेशन (BBSR) ने इन तरंगों को रिकॉर्ड किया। अलग-अलग घनत्व वाली परतों से गुजरते समय ये तरंगें मुड़ती और धीमी होती हैं। इसी डेटा से वैज्ञानिकों ने द्वीप के नीचे करीब 50 किलोमीटर गहराई तक की त्रि-आयामी तस्वीर तैयार की, जिसमें चार स्पष्ट परतें दिखाई दीं।
क्यों है यह खोज अहम?
यह खोज बरमूडा ट्रायंगल से जुड़े पुराने मिथकों—जैसे एलियन, रहस्यमय भंवर या अलौकिक शक्तियों—को और कमजोर करती है। अब साफ है कि असली रहस्य समुद्र की सतह पर नहीं, बल्कि धरती की गहराई में छिपा है। यह अध्ययन पृथ्वी की भूविज्ञान को समझने में मदद करेगा और बताएगा कि कुछ पुराने ज्वालामुखी द्वीप क्यों नहीं धंसते।
बरमूडा ट्रायंगल भले ही आज भी लोगों को आकर्षित करता हो, लेकिन अब इसका सबसे बड़ा राज विज्ञान के जरिए सामने आ चुका है—और आने वाले समय में इस क्षेत्र से और भी रोचक खुलासे हो सकते हैं।